Sunday, August 5, 2018

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की मित्रों को समर्पित कविता

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से ,
जो सहला दे, मित्र वही है।

रूखे मन को, सराबोर कर,
जो नहला दे, मित्र वही है।

प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,
जो बहला दे, मित्र वही है।

अश्रु बूँद की, एक झलक से ,
जो दहला दे , मित्र वही है।

-मैथिलीशरण गुप्त

Friday, July 20, 2018

श्रद्धांजलि _ कवि-गीतकार गोपालदास नीरज

फ़कीराना बादशाहत

-डॉ. (श्रीमती) कीर्ति काले

आदरणीय पद्मविभूषण श्री गोपाल दास नीरज
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ,बस इतनी सी तो बात है
किसी की आँख खुल गयी , किसी को नींद आ गयी।(नीरज)

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हिन्दी कविता के पूरे एक युग का नाम है पद्मविभूषण श्री गोपाल दास नीरज।नीरज जी ने कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य का चरमोत्कर्ष देखा और जिया है ।

जब मैं ग्वालियर में कॉलेज में पढ़ती थी तब भारत में नया नया टेलीविजन आया था।शाम को 5 बजे प्रसारण प्रारम्भ होता था दूरदर्शन के लोगो से ।पहला कार्यक्रम कृषि दर्शन। और अन्तिम कार्यक्रम संगीत या नृत्य का अखिल भारतीय कार्यक्रम।हम सारे ही कार्यक्रम बिना नागा देखते थे।तब महीने,पन्द्रह दिन में कवि सम्मेलन भी आता था। चूंकि तब मैं कविताएँ लिखने लगी थी, स्थानीय गोष्ठियों में भी जाती थी इसलिए दूरदर्शन और आकाशवाणी से प्रसारित सारे कवि सम्मेलन देखती,सुनती थी। साहित्यिक परिचर्चाएँ भी ध्यान से सुनती थी। तभी नीरज जी ,सोम जी,रमानाथ अवस्थी जी, वीरेन्द्र मिश्र जी, डॉ कुंवर बेचैन जी,भारतभूषण जी,किशन सरोज जी डॉ शिव मंगल सिंह सुमन जी,बैरागी जी ,श्री सुरेन्द्र दुबे जी (जयपुर)को पहली बार देखा,सुना।नीरज जी सुनाते थे-कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
आदमी को आदमी बनाने के लिए आँसू नहीं आँखों वाला पानी चाहिए
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इन्सान को इन्सान बनाया जाए
ऐ भाई ज़रा देखके चलो
आदि आदि।
खूब पसन्द आता था उनका अलग अन्दाज में खाँसकर सुनाना।
नीरज जी पूरे कवि सम्मेलन पर छा जाते थे।तब टीवी पर जो भी दिखता था वो हीरो सा लगता था।सब उसकी नकल करने लगते थे।
1989 में मुझे स्थानीय और आसपास के कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा। मैं काव्यपाठ के लिए जाने लगी।तब कवियों में बड़े कवियों के विषय में भी चर्चाएँ होतीं थीं। नीरज जी के बारे में बहुत सी चर्चाएँ सुनीं।उनका उल्लेख यहाँ नहीं करूंगी।

पहली घटना -

दिल्ली में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड का बहुत बड़ा कवि सम्मेलन होता था आज भी होता है। उसमें काव्यपाठ के लिए निमंत्रण प्राप्त हुआ। मैं अपने पिताजी के साथ दिल्ली आयी।भव्य मंच पर वे कवि विराजमान थे जिन्हें अभी तक केवल टीवी सक्रीन पर देखा था।आज उन्हें साक्षात देखकर , उनके साथ मंच पर बैठकर ऐसा लगा जैसे जीवन की साध पूरी हो गई हो। पहले विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये सब सच है।अस्तु
सबका काव्यपाठ मैंने अतिरिक्त ध्यान से सुना।उनकी आपसी बातचीत,उठना-बैठना सब बहुत ध्यान से देखा,सुना। मैंने क्या सुनाया ये तो याद नहीं पर तालियाँ खूब बजीं। सबने प्रशंसा की। मज़ेदार बात तो अब हुई। कवि सम्मेलन के बाद सभी कवियों और अतिथियों को दिल्ली के पाँच सितारा होटल मोर्या शेरेटन में रात्री भोज के लिए ले गए। मैंने इतना बड़ा चकाचक होटल पहली बार देखा था। मैं थोड़ी डरी सहमी हतप्रभ सी सबको फॉलो कर रही थी। बहुत देर तक सब बैठे रहे। मुझे खूब जोर की भूख लगने लगी लेकिन खाना नहीं आया।लगभग एक डेढ़ घण्टे बाद हमें वहाँ ले गए जहाँ बुफे लगा था। ioc के अधिकारियों ने सबको खाना लेने का आग्रह किया। सबसे बड़े नीरज जी थे।सब कवियों ने सबसे पहले नीरज जी से खाना लेने को कहा। नीरज जी नीचे बिछे कालीन पर अल्ती पल्ती मारकर बैठ गए और बोले मैं तो नीचे बैठकर खाना खाता हूँ। मुझे यहीं परोसिए।सारे लोग सन्न रह गए। एक दूसरे का मुँह देखने लगे कि अब क्या करें।किसी कवि ने धीरे से नीरज जी से कहा कि ये फाइव स्टार होटल है।यहाँ स्वयं ही खाना लेना पड़ेगा। परोसने का सिस्टम नहीं है तो नीरज जी जोर से बोले हम खाऐंगे तो धरती पर बैठकर नहीं तो नहीं खाऐंगे।सारे अधिकारी सकते में आ गए।अब करें तो क्या करें।तभी सर्वोच्च अधिकारी नीरज जी के साथ नीचे अल्ती पल्ती मारकर बैठ गये और वेटरों से बोले खाना परोसिए। फिर क्या था।सभी जूनियर अधिकारियों, कवियों ने फाइव स्टार होटल के फर्श पर बिछे कालीन पर पंगत लगा ली। ऐसी फकीराना बादशाहत मैंने अपने जीवन में पहली बार देखी।
फिर तो अक्सर कवि सम्मेलनों में भेंट हो जाती थी। मैं नवोदित कवयित्री थी नीरज जी स्टार कवि। इतना स्टारडम होने के बावजूद भी उन्होंने कभी आडम्बर नहीं ओढ़ा। सदैव सरल,सहज। आजकल के नए नए स्टार कवि जो स्वयं अपने सर्वाधिक पारिश्रमिक की घोषणा करते और करवाते फिरते हैं,कीमती सूट-बूट का रौब झाड़ते घूमते है वो नीरज जी की लोकप्रियता और स्टारडम के आगे आज भी कहीं नहीं टिकते।

दूसरी घटना-

दूरदर्शन के सीपीसी की ओर से डॉ गोविंद व्यास जी के संयोजन एवं संचालन में कवि सम्मेलन की रिकॉर्डिंग खेलगाँव स्थित स्टूडियो में थी। मुझे भी कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। आदरणीय श्री नीरज जी की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन होना था। अचानक बिजली चली गई। स्टूडियो में बेहद गर्मी लगने लगी।सब पसीने पसीने हो रहे थे। काफी देर तक जब बिजली नहीं आयी, वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं हुई तो नीरज जी उठे और जाने लगे।किसी ने पूछा कहाँ चल दिए?वो बोले अलीगढ़।अब मैं इस गर्मी में यहाँ नहीं रुकूंगा।सब लोग उन्हें रोकने की चेष्टा करने लगे लेकिन वो नहीं माने। स्टूडियो से बाहर आकर अपनी एम्बेसडर गाड़ी में बैठ गए। सौभाग्य से तभी बिजली आ गयी। नीरज जी को मनाकर वापस स्टूडियो में लाया गया।वो कुर्ता उतारकर ,घर की सिली जेब वाली बनियान में मंच के बीचों-बीच अध्यक्षीय आसन पर विराजमान हो गए। कार्यक्रम की प्रोड्यूसर ने उन्हें समझाया कि वे कुर्ता पहन लें।ऐसे बनियान में अच्छा नहीं लग रहा। तो नीरज जी फिर उठकर खड़े हो गए और बोले कि नीरज को देखना है या नीरज की कविता सुननी है? मैं तो ऐसे ही बनियान में बैठूंगा। आपको जँचता हो तो ठीक है नहीं तो मैं चला। प्रोड्यूसर के पास अब कोई विकल्प नहीं था। बोलीं आप बैठिए। आपको जैसा ठीक लगे वैसा हम करेंगे। फिर नीरज जी ने बनियान पहनकर ही दूरदर्शन के राष्ट्रीय प्रसारण में प्रसारित होने वाले कवि सम्मेलन की अध्यक्षता की।

तीसरी घटना-

चार पाँच वर्ष पूर्व दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में गोयनका फाउंडेशन का सम्मान समारोह एवं कवि सम्मेलन था।
हिन्दी के नामचीन समीक्षक श्री नामवर सिंह जी को एक लाख रुपए का सम्मान दिया गया। अन्य भी अनेक गणमान्य साहित्यकारों को सम्मान राशि दी गयी। नीरज जी के सम्मान का क्रम आया। उन्हें उद्घोषक ने काव्य मंचों का महा नायक घोषित किया। और भी कसीदे काढ़े नीरज जी के सम्मान में। नीरज जी को बड़ी सी सजी धजी कुर्सी पर बिठाया गया। तिलक लगाया ,शॉल ओढ़ाया,चाँदी में मढ़ा श्री फल अर्पित किया। फिर उद्घोषक ने घोषणा की कि यहाँ सम्मान समारोह सम्पन्न हुआ अब कवि सम्मेलन होगा। नीरज जी नाराज हो गए।शॉल,श्रीफल वहीं कुर्सी पर फेंककर बड़बड़ाते हुए मंच के पीछे चले गए। हमें समझ में नहीं आया कि अचानक क्या हुआ ? लेकिन जानकार लोग जान गए थे कि क्या हुआ।सबको सम्मान राशि और नीरज जी को कोरे शब्द। समीक्षक को एक लाख और कवि को कुछ नहीं।तभी श्याम गोयनका जी ने माईक से एनाउंस किया कि नीरज जी को भी एक लाख रुपए राशि का चैक दिया जाएगा। नीरज जी बोले दिया जाएगा नहीं अभी दीजिए।बाद की किसने देखी है। वहीं एक लाख का चैक दिया तब नीरज जी माने।

चौथी घटना -

2005 में आईसीसीआर के सौजन्य से मुझे पाँच देशों की काव्य यात्रा पर इंग्लैंड,पोलेण्ड, सूरीनाम,ट्रिनिडाड टुबेगो जाना था।तब मेरा कोई काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ था। मैंने पाण्डुलिपि तैयार की। और नीरज जी को फोन करके आशीर्वाद स्वरूप कुछ लिखकर भेजने के लिए आग्रह किया।आश्चर्य अगले दिन ही रजिस्टर्ड डाक से नीरज जी का आशीर्वाद स्वरूप लिखा दो पृष्ठों का पत्र मुझे मिल भी गया।
ये समस्त संस्मरण गीत ऋषि डॉ गोपाल दास नीरज जी के व्यक्तित्व की फकीराना बादशाहत को दर्शाते हैं लेकिन इस बादशाह ने अपनी सल्तनत मात्र अपने सिंहासन तक सीमित रखी।स्वयं का सम्मान , पुरस्कार,स्वयं का पद,बचा रहे बस ,भले ही धीरे-धीरे कवि सम्मेलनों से कविता गायब हो जाए। नीरज जी के फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को स्वयं उन्हीं के खरज भरे स्वर में सुनकर घण्टों तक झूमने वाले श्रोता उन्ही के देखते देखते अश्लील चुटकुलों पर मज़ा लेने लगे, घटिया जुमलेबाजी को कविता समझने लगे,क्षणिक उत्तेजना पर तालियों के पहाड़ बनाने लगे और मंच का बादशाह आत्ममुग्धता में अभिभूत होता रहा। उसके रहते अच्छे गीत ,विचारवान कविताएँ कवि सम्मेलनों के मंचों को प्रणाम कर बिदा होती रहीं और उसने उन्हें रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया। नीरज जी के देखते देखते सारे कवि सम्मेलन हास्य कवि सम्मेलन में परिवर्तित हो गए ।जाने क्या विवशता रही कि नीरज जी सब कुछ देखते सुनते हुए भी लगभग अकर्मण्य बने रहे। जानते समझते की गई इस भूल के लिए इतिहास उन्हें कभी क्षमा करेगा या नहीं ये तो भविष्य बताएगा।
आदरणीय नीरज जी कविसम्मेलनों के युग पुरुष हैं। मुझे गर्व है कि मैंने उनके साथ अनेक बार काव्य पाठ किया है।

पाँचवी घटना-

पिछले दिनों नीरज जी के क्षीण स्वास्थ्य का समाचार मिला। मैं तबीयत देखने अलीगढ़ गयी।नीरज जी वाकई अस्वस्थ थे। बिस्तर पर से उठना भी नहीं आ रहा था। लेकिन चेहरे के तेज में कोई कमी नहीं थी। मुझसे खूब बातें कीं। कवि सम्मेलनों को लेकर उनकी लालसा में कोई कमी महसूस नहीं की मैंने।लेटे लेटे ही मेरे आग्रह पर कविता भी सुनाई जो मैंने रिकॉर्ड कर ली। श्री सुरेन्द्र दुबे स्मृति ग्रन्थ के लिए धाराप्रवाह बोलते रहे। मेरे शीघ्र प्रकाश्य काव्यसंग्रह के लिए भी आशीर्वचन कहे।
93 वर्ष के वय में भी गजब की स्मृति थी इस महाकवि की।

छठी घटना-

मेरा सौभाग्य है कि श्रीमती सरला नारायण ट्रस्ट द्वारा इस वर्ष का डॉ विष्णु सक्सेना सम्मान मुझे आदरणीय श्री नीरज जी के कर कमलों द्वारा प्राप्त हुआ।
कवि सम्मेलनों के युग पुरुष परम श्रद्धेय श्री नीरज जी के चरणों में कोटि कोटि नमन । ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे एवं परिजनों को यह दुख सहने की शक्ति दे।
ॐ शान्ति
डॉ कीर्ति काले


-कवि सम्मेलनों के युगपुरुष गोपालदास नीरज का निधन 19 जुलाई, 2018 को हो गया है। यह श्रद्धांजलि लेख कवयित्री-गीतकार डॉ. (श्रीमती)  कीर्ति काले की फेसबुक वॉल से लेकर ज्यों-का-त्यों यहां दिया जा रहा है। साभार

Sunday, April 29, 2018

जिन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे, बारिश में पतंग उड़ाया न करो।

स्थान : मधुबनी, बिहार

दिनांक : 29 अप्रेल, 2018

आयोजक : दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह


बिहार के मधुबनी में दैनिक जागरण मुजफ्फर यूनिट के 14वें स्थापना दिवस पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कवियों और शायरों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

मंच से गूंजे काव्य मोती

शबाना शबनम

तुझे यह खबर नहीं शायद
तू आज भी मेरी अंगडाइयों में रहता है।
तू एक नूर सा
परछाइयों में रहता है
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उंगलियां न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो।
जिन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिश में पतंग उड़ाया न करो।
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मजहब के रिश्ते को दर्पण करती शबनम।
कुछ फूल शहादत के अर्पण करती शबनम।
भारत की शहादत पर कुर्बान हुए हैं जो
उन अमर शहीदों को वंदन करती शबनम।

तेज नारायण शर्मा

फरियादी करने कराने में लुट गए।
इमदाद हाकिम की पाने में लुट गए।
लाजों की अस्मत तो मुखिया ने लूट ली।
बाकी जो जेवर थे थाने में लुट गई।

प्रताप फौजदार

आगे-आगे एक नंगा आदमी
भागा चला जा रहा था।
उसके पीछे एक कच्छा पहनकर
भाग रहा था।
मेरे मित्र ने कहा-
प्रताप सिंह यह क्या कलेश है,
यह कैसा भेष है,
मैंने कहा- भाई आगे वाला विकसित और
पीछे वाला विकासशील देश है।

दिनेश दिग्गज

फूलों की तरह रोज खिलो अच्छा लगेगा।
लिबास दोस्तों का सिलो अच्छा लगेगा।
फेसबुक पर तो मिलते हो फालतू लोगों से
गांव जाकर सगे भाइयों से मिलो अच्छा लगेगा।
जमाने के तजुर्बे गूगल पर न मिलेंगे,
मिले जो वक्त मां-बाप के पास जाय करो।
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रास्ता बंद है।
आता कहाँ से है?
आ जाए तो जाता कहाँ से है?
एक अप्रेल से बंद है शराब तो
लाता कहां से है?


अपना भी तो दम घुटता है एक अकेले कोने में, तू हो तेरा एहसास न हो, तो क्या है तेरे होने में

स्थान : लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश

आयोजक : क्षेत्रीय परिवहन विभाग, लखीमपुर


लखीमपुर खीरी में 23वें राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह के तहत कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया गया। कवियों और शायरों ने भी सड़क सुरक्षा जैसे विषय पर अपनी रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को जागरुक करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

मंच से गूंजे काव्य मोती

विजय शुक्ल 'बादल'

अपना भी तो दम घुटता है एक अकेले कोने में
तू हो तेरा एहसास न हो, तो क्या है तेरे होने में

इलियास चिश्ती (लखीमपुर खीरी)

जिनको अपनी जान से चाहत होती है,
हेलमेट की उन सबको आदत होती है।
लौट के जब वो घर को आते हैं,
घर वालों को कितनी राहत होती है।

मंजर यासीन (सीतापुर)

एक पल में ये क्या हो गया,
दोस्त अहबाब क्या हो गए,
आई जब इम्तेहां की घड़ी,
बावफा बेवफा हो गए।

नवल सुधांशु (लखीमपुर खीरी)

मोहब्बत का मुसाफिर हूं
जवां धड़कन है मेरा घर,
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मानसरोवर के तट पर मैंने मंदिर एक बनाया है

उमर फारुकी

दिए की लौ से चलो ङ्क्षजदगी संवारी जाए,
श्री कृष्ण तेरी आरती उतारी जाए।
हम अपने आप को समझने लगे शायद,
तमाम उम्र जो तेरे साथ गुजारी जाए।

जीशान चमन (गोला)

दीवार कोई आए न नफरत की बीच में,
तुम भी बजाओ शंख और हम भी अजान दें

मुजाहिद अली (अलीगढ़)

मिटा के अपनी हस्ती को खुद जो
दूसरों को सुकून पहुंचाए,
आदमियत इसी को कहते हैं।

इन्होंने भी किया काव्यपाठ

आदर्श बाराबंकवी, उस्ताद शायर डॉ. मो. शफी सीतापुरी और फारुख सरल ।

Saturday, April 28, 2018

रहमतें सिर्फ बरसती हैं उन्हीं लोगों पर जिनके दामन में बुजुर्गों की दुआ होती है

स्थान : कानपुर, उत्तर प्रदेश

आयोजक : हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में स्थित हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय में ओडिशी-2018 के तहत कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने विद्यार्थियों को गुदगुदाने के साथ ही नसीहतें भी दीं।

मंच से गूंजे काव्य मोती

धीरज सिंह 'चंदन'

सिविल लाइंस अगर हो तुम, मुझे बर्रा समझ लेना।
मैं घंटाघर कसम से तुम तो मोतीझील लगती हो।

डॉ. सुनील जोगी

किसी गीता से न कुरआं से अदा होती है,
न बादशाहों की दौलत से अता होती है।
रहमतें सिर्फ बरसती हैं उन्हीं लोगों पर
जिनके दामन में बुजुर्गो की दुआ होती है।

दिलीप दुबे

हम इस तरह प्यार का इजहार करते हैं,
वह मिस कॉल करती है, जब हम मिसकॉल करते हैं।


इन्होंने भी किया काव्य पाठ

कवि आशीष 'अनल', डा.कमल मुसद्दी, प्रख्यात मिश्रा, पंकज परदेशी, प्रियांशु गजेंद्र, रुपेश सक्सेना, पद्मिनी शर्मा।

Thursday, April 26, 2018

मन तो मेरा भी करता है, झूमूं, नांचू, गाऊं मैं, आजादी की सौगात पर सौ- सौ गीत सुनाऊं

स्थान : सहरसा, बिहार

दिनांक : 26 अप्रेल, 2018

आयोजक : दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह

बिहार के सहरसा में 26 अप्रेल, 2018 बुधवार की रात एमएलटी कॉलेज के मैदान पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन में देर रात तक श्रोताओं ने कभी ठहाके लगाए तो कभी वीर रस से सराबोर हुए।  मंच संचालक डॉ. सुरेश अवस्थी ने किया।

मंच से गूंजे काव्य मोती

कवयित्री गौरी मिश्रा

शब्द को संवाद दे अर्थ को निखार दे (सरस्वती वंदना)
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इन्हें जनवरी दे दो तो दिसंबर मांग लेते हैं
जरा सी बात कर लो तो नंबर मांग लेते हैं।
गुलाबी नोटों से ज्यादा गुलाबी गाल कर कर दूंगी,
तुम्हें गीत-गजलों से मालामाल कर दूंगी।

पद्मश्री हरिओम पवार

मन तो मेरा भी करता है झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ
आजादी के टूटे-फूेटे सपने लेकर बैठा हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
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ये आतंकवाद को दिल्ली के चाटे होते
एक शीश के बदले बीस शीश काटे होते
बार- बार गद्दारी मां भारत सह जाती है
ज्यादा संयम दिखाना भी कायरता कहलाता है।

पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे

मेरा यह फरमान जेएनयू तक पहुंचा दो
जो अफजल की करे पैरवी उसको भी लटका दो
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कलम सलामत हैं मेरी तो किश्तों में क्यों बिकूं
आप बोलिए भाई साहब किस पर कविता लिखूं
थाने से निकलती औरत के फटे आंचल पर
या अस्मत लुटा कर मिले मुट्ठी भर चावल पर
नेताओं की कुर्सियाना हवस पर
या भूखे बच्चों के बाल दिवस पर...

डॉ. सुरेश अवस्थी

नाली की गंदी मिट्टी से पूजा के बर्तन गढ़े नहीं जाते
जुबानें अगर गंदी हों तो प्रार्थना के स्वर पढ़े नहीं जाते
अपनी ख्वाहिश के परिंदों पे निशाना रखना
जिंदगी का जो सफर है वो सुहाना रखना
घर को मंदिर की तरह खूब सजाना लेकिन
दिल के आंगन में बुजुर्गों का ठिकाना रखना।

महेन्द्र अजनबी

चौराहे पर खड़े चलना भूल गए,
गंजे हुए इसलिए बाल उगना भूल गए
हम सब भूल गए आपस का प्यार
मेहमान का सत्कार,
संयुक्त परिवार,
पत्नी आते ही मां- बाप

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की मित्रों को समर्पित कविता

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से , जो सहला दे, मित्र वही है। रूखे मन को, सराबोर कर, जो नहला दे, मित्र वही है। प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,...