Sunday, August 5, 2018

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की मित्रों को समर्पित कविता

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से ,
जो सहला दे, मित्र वही है।

रूखे मन को, सराबोर कर,
जो नहला दे, मित्र वही है।

प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,
जो बहला दे, मित्र वही है।

अश्रु बूँद की, एक झलक से ,
जो दहला दे , मित्र वही है।

-मैथिलीशरण गुप्त

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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की मित्रों को समर्पित कविता

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से , जो सहला दे, मित्र वही है। रूखे मन को, सराबोर कर, जो नहला दे, मित्र वही है। प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,...