स्थान : सहरसा, बिहार
दिनांक : 26 अप्रेल, 2018
आयोजक : दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह
बिहार के सहरसा में 26 अप्रेल, 2018 बुधवार की रात एमएलटी कॉलेज के मैदान पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन में देर रात तक श्रोताओं ने कभी ठहाके लगाए तो कभी वीर रस से सराबोर हुए। मंच संचालक डॉ. सुरेश अवस्थी ने किया।
मंच से गूंजे काव्य मोती
कवयित्री गौरी मिश्रा
शब्द को संवाद दे अर्थ को निखार दे (सरस्वती वंदना)
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इन्हें जनवरी दे दो तो दिसंबर मांग लेते हैं
जरा सी बात कर लो तो नंबर मांग लेते हैं।
गुलाबी नोटों से ज्यादा गुलाबी गाल कर कर दूंगी,
तुम्हें गीत-गजलों से मालामाल कर दूंगी।
इन्हें जनवरी दे दो तो दिसंबर मांग लेते हैं
जरा सी बात कर लो तो नंबर मांग लेते हैं।
गुलाबी नोटों से ज्यादा गुलाबी गाल कर कर दूंगी,
तुम्हें गीत-गजलों से मालामाल कर दूंगी।
पद्मश्री हरिओम पवार
मन तो मेरा भी करता है झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ
आजादी के टूटे-फूेटे सपने लेकर बैठा हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
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ये आतंकवाद को दिल्ली के चाटे होते
एक शीश के बदले बीस शीश काटे होते
बार- बार गद्दारी मां भारत सह जाती है
ज्यादा संयम दिखाना भी कायरता कहलाता है।
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ
आजादी के टूटे-फूेटे सपने लेकर बैठा हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
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ये आतंकवाद को दिल्ली के चाटे होते
एक शीश के बदले बीस शीश काटे होते
बार- बार गद्दारी मां भारत सह जाती है
ज्यादा संयम दिखाना भी कायरता कहलाता है।
पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे
मेरा यह फरमान जेएनयू तक पहुंचा दो
जो अफजल की करे पैरवी उसको भी लटका दो
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कलम सलामत हैं मेरी तो किश्तों में क्यों बिकूं
आप बोलिए भाई साहब किस पर कविता लिखूं
थाने से निकलती औरत के फटे आंचल पर
या अस्मत लुटा कर मिले मुट्ठी भर चावल पर
नेताओं की कुर्सियाना हवस पर
या भूखे बच्चों के बाल दिवस पर...
जो अफजल की करे पैरवी उसको भी लटका दो
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कलम सलामत हैं मेरी तो किश्तों में क्यों बिकूं
आप बोलिए भाई साहब किस पर कविता लिखूं
थाने से निकलती औरत के फटे आंचल पर
या अस्मत लुटा कर मिले मुट्ठी भर चावल पर
नेताओं की कुर्सियाना हवस पर
या भूखे बच्चों के बाल दिवस पर...
डॉ. सुरेश अवस्थी
नाली की गंदी मिट्टी से पूजा के बर्तन गढ़े नहीं जाते
जुबानें अगर गंदी हों तो प्रार्थना के स्वर पढ़े नहीं जाते
अपनी ख्वाहिश के परिंदों पे निशाना रखना
जिंदगी का जो सफर है वो सुहाना रखना
घर को मंदिर की तरह खूब सजाना लेकिन
दिल के आंगन में बुजुर्गों का ठिकाना रखना।
जुबानें अगर गंदी हों तो प्रार्थना के स्वर पढ़े नहीं जाते
अपनी ख्वाहिश के परिंदों पे निशाना रखना
जिंदगी का जो सफर है वो सुहाना रखना
घर को मंदिर की तरह खूब सजाना लेकिन
दिल के आंगन में बुजुर्गों का ठिकाना रखना।
महेन्द्र अजनबी
चौराहे पर खड़े चलना भूल गए,
गंजे हुए इसलिए बाल उगना भूल गए
हम सब भूल गए आपस का प्यार
मेहमान का सत्कार,
संयुक्त परिवार,
पत्नी आते ही मां- बाप
गंजे हुए इसलिए बाल उगना भूल गए
हम सब भूल गए आपस का प्यार
मेहमान का सत्कार,
संयुक्त परिवार,
पत्नी आते ही मां- बाप
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